Friday, March 11, 2011

पाऊस

पाऊस झाला हिरवा
हिरव्यागार पानांचा
थेंबांतून उलगडे 
खेळ नव्या क्षणांचा 

पाऊस आला दाटून 
मेघांच्या अधरांतून
होई पृथ्वी चैतन्याची
ओल्या गंधित मातीतून

पाऊस झाला धुंदीचा 
शब्दातीत ओळखीचा 
वेडावल्या मनाच्या 
हव्या हव्या आठवणींचा.. 

Saturday, March 5, 2011

चार ओळी

सुखदसे पहाटस्वप्न
विरून जाई निमिषात 
मनी रुंजत राहती 
हातात गुंतले हात..

Tuesday, March 1, 2011

त्रिवेणी

खिडकी खोलके देखने पर चाँद दामनमें आया करता था ,
आजकल वोंह भी छूपासा रहता है,बादलोंके जंगलेमें कहीं..

शायद उसने मेरी आँखोंमे, दुनियाकी बेजानी पढ़ ली ! 
                                                  
                                                               - गौरव   

क्षण

प्रारब्धाच्या वाटा
क्षितिजाशी बोलणाऱ्या
अल्लद बोचरा काटा
गुलाबाचा फुलणाऱ्या 

   अंगणीचा मंद दिवा
   तिमिराशी झुंजणारा
   जसा चमचम काजवा
   पानांतून उजळणारा 

अशाच नि:शब्द प्रहरी
ममं मन होई रण
वेदनाचं ठेऊन ऊरी  
निसटू पाही क्षणं !   

( ध्यास 
दिवाळी अंक 2011)