फासले जो बीच हमारे, अँधेरे की तरह छाये
तो खामोश खामोश चेहेरेपे रात क्यों रुके ?
तेरे कदमोंके निशाँ राहोंमे सरे बिखरेसे,
मै धुंडने चला हूँ , तो बरसात क्यों रुके ?
धन-औ-सत्ताका 'शरीफोंका' जुलूस है,
ईमान पूछूँ जरासा, तो बात क्यों रुके ?
यह बेरहम समय तो निकल रहा 'गौरव'
आँखोंमे सुहानी यादोंकी बारात क्यों रुके ?
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