इक पलकी न इक दिनकी
यह बरसोंकी बात है,
आजादिकी धून नईसी
यह क्रांतिकी शुरुआत है |
पैसोंकी सब नशा है
और सत्ताका गुमान है ,
गम कहाँ,शर्म कहाँ ?
इनका बिक चुका ईमान है,
बदलाव के अब बादल है,
अरमानोंकी बरसात है ||
आज़ादीकी धून नईसी
यह क्रांतिकी शुरुआत है..
सच्चाई की कीमत कहाँ ?
बेईमानीका चलता राज,
नौजवान अब जाग उठे
परिवर्तन का हो आग़ाज ,
खुशहाली की सहर हो रही,
ढलनेको काली रात है ||
आज़ादीकी धून नईसी
यह क्रांतिकी शुरुआत है..
कठिनाईसे झुंज लेंगे
निर्भयता का हाथ मिले,
लोकतंत्रके दहलीज पर
नीतीमूल्योंके चराग़ जले,
अब तो आँधी आनी है,
पूरा भारत साथ है ||
आज़ादीकी धून नईसी
यह क्रांतिकी शुरुआत है..
- गौरव पांडे